CA PRAVIN KUMAR KARN
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CA PRAVIN KUMAR KARN
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Chartered Accountant
मोती के बूंद सा
पल पल सजा जिन्दगी का धार|

हंसोहंसाओ और मुस्कुराओ
करो जीवन का सोलह सिंगार|

झूम के गाओ नाचो
ये जीवन है राग मल्हार|

पतझर में न उदास हो
आगे फिर है मौसम बहार|

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Where hEaRT Speaks
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July 8, 2025 at 1:35 AM
जय सियाराम।।

तुलसीदास अति आनंद
देख कर मुखारबिंद
रघुबर के छबि समान
रघुबर छबि बनिया।।

राम नवमी के सुभकामना।
April 6, 2025 at 2:23 AM
अहिले को मिलोमितों तंत्र vs. राजतन्त्र

दुईटै चहियेन।।

गणतंत्र जिंदाबाद।
April 1, 2025 at 5:43 AM
March 22, 2025 at 2:48 AM
March 3, 2025 at 2:50 AM
झरेको फूल

फूल हरू झर्छन
हँगा हरू रुदैंनन
फूल फुलाई रहन्छन।

झरेका फूल हरु रुदैंनन
बसना फ़िज़ाई रहन्छन।

म भित्र म
फुल्छु र झड़छु
फेरी
झड़छु र फुल्छु
बासना फ़िज़ाई रह्ननछु।

Date : 30.08.2024

मिति: २०८१/05/१४ बिक्रम सम्बबत
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झरेको फूल By Pravin kumar karn
फूल हरू झर्छनहँगा हरू रुदैंननफूल फुलाई रहन्छन। झरेका फूल हरु रुदैंननबसना फ़िज़ाई रहन्छन। म भित्र मफुल्छु र झड़छुफेरीझड़छु र फुल्छुबासना फ़िज़ाई रह्ननछु। Date : 30.08.2024 मिति: २०८१/05/१४ बिक्रम सम्बबत…
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January 11, 2025 at 4:24 AM
January 1, 2025 at 2:50 AM
माँ

मैने नही पुछा कभी
माँ क्या चाहती है
किस बात कि उसे है खुसि
क्या बात उसे रुलाती है,

बस मै करता रह बखान
मुझे क्या चाहिए
रोटि कैसी हो
मुझे सब्जी मे नामक कितना लगेगा

मैने नही पुछा कभी
माँ क्या चाहती है

आज जागते हुए चाहा जानना
माँ को
उसकी हर चाहत को
खुसि को दुःख को
सपनो को

कितना अजीब लगता है
सोचना की माँ क्या चाहती है?

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माँ
मैने नही पुछा कभीमाँ क्या चाहती हैकिस बात कि उसे है खुसिक्या बात उसे रुलाती है, बस मै करता रह बखानमुझे क्या चाहिएरोटि कैसी होमुझे सब्जी मे नामक कितना लगेगा मैने नही पुछा कभीमाँ क्या चाहती है आज जाग…
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December 30, 2024 at 2:25 PM
Reposted by CA PRAVIN KUMAR KARN
Should be in every newsagents window.
December 17, 2024 at 10:38 PM
Reposted by CA PRAVIN KUMAR KARN
Writing is an act of rebellion.
Writing is an act of creation.
Writing is an act of salvation.
Writing is an act of exploration.
Writing is an act of emotion.
Writing is an act of confession.
Writing is an act of speculation.
Writing is an act of reflection.
Keep writing.
December 16, 2024 at 8:08 PM
Reposted by CA PRAVIN KUMAR KARN
Meanwhile in Nepal
December 15, 2024 at 5:35 AM
मेरे गाउँ से सड़कें जाती है
मेरे गाउँ को सड़कें आती नही।

तभी तो
सिंदूरी सपने सजोये
गाउँ से जाते लोग
फिर लौट नही पाते।।

pravinkarn.wordpress.com/2023/04/13/%...
घर
मेरे गाउँ से सड़कें जाती हैमेरे गाउँ को सड़कें आती नही। तभी तोसिंदूरी सपने सजोयेगाउँ से जाते लोगफिर लौट नही पाते।। तभी तोमाया नगरी के तापसे जलती आत्मा सूँघते रहते हैलेकिन लौट नही पाते। मेरे गाउँ से स…
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December 14, 2024 at 2:34 AM
हिंदी कविता
December 12, 2024 at 3:05 PM
Persuing my dream
December 12, 2024 at 3:04 PM
मीत मेरे मन मीत मेरे।

शब्द संगीत के रचना में
तुझ को मैं नही समा पाता हूँ,
लघु है मन मस्तिष्क मेरा
तुझ को मैं अनन्त पाता हूँ।

गढू किस मिट्टी से तेरा मूरत
कैसे उतारूँ तेरा सूरत,
मैं कल्पना के सागर में निरन्तर गोता लगाता हूँ
तुझ को मैं अकल्पनीय पाता हूं।

मीत मेरे मन मीत मेरे।

गाऊं कौन सा गान
लगाऊं कौन सुर तान,
कैसे पहचाऊं आवाज तुम तक
तुझ को असाध्य पाता हूँ।

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मीत मेरे मन मीत मेरे। By: Pravin Kumar karn
मीत मेरे मन मीत मेरे। शब्द संगीत के रचना में तुझ को मैं नही समा पाता हूँ, लघु है मन मस्तिष्क मेरा तुझ को मैं अनन्त पाता हूँ। गढू किस मिट्टी से तेरा मूरत कैसे उतारूँ तेरा सूरत, मैं कल्पना के सागर मे…
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November 25, 2024 at 7:37 AM
बिखराब

अन्न से बिज होने का सफर
के लिए होना पड़ता है जमिंदोज
बिख्ड़ना पड़ता है मिट्टी मे

दब के मिट्टी तले हि
अङ्कुरित होते हैं
प्राण

बिखरना
सिर्फ सर्बनाश नही
नब जीवन भी है।

: प्रविण कुमार कर्ण
: Pravin Kumar Karn
मिति : २०८१ - ०८ - ०५ (बिक्रम सम्बत)

Date: 20.11.2024
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बिखराब
अन्न से बिज होने का सफरके लिए होना पड़ता है जमिंदोजबिख्ड़ना पड़ता है मिट्टी मे दब के मिट्टी तले हिअङ्कुरित होते हैंप्राण बिखरनासिर्फ सर्बनाश नहीनब जीवन भी है। : प्रविण कुमार कर्ण : Pravin Kumar Karn म…
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November 22, 2024 at 3:07 AM
दो किनारे

नदी के दो किनारे
अगर मिल जाये तो?

तो मिट जायेगा अस्तित्व
नदी और किनारे दोनों की

और

हो जाएगी अनाथ
नदी की कोख का पानी

किनारे के बंधन से मुक्त
निकल परेगी
अनजानी अनदेखी राहोंपे
भटकने के लिए

इसलिए जरुरी है

किनारे कभी न मिले
हमेश हमेशा के लिए|

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दो किनारे By Pravin kumar karn
नदी के दो किनारे अगर मिल जाये तो? तो मिट जायेगा अस्तित्व नदी और किनारे दोनों की और हो जाएगी अनाथ नदी की कोख का पानी किनारे के बंधन से मुक्त निकल परेगी अनजानी अनदेखी राहोंपे भटकने के लिए इसलिए जरुरी…
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November 21, 2024 at 2:15 AM
Reposted by CA PRAVIN KUMAR KARN
रबि र छबिको जिन्दगी मुद्दा लड्दै सकिने भयो।
November 20, 2024 at 12:03 PM
@arunshah240.bsky.social Thanks for being my 1st follower on @bsky.app
November 20, 2024 at 9:29 AM
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नदियाँ
समुन्दर से नही मांगती हिसाब
अपने पानी का,
फिर मैं कैसे मांग लूँ तुमसे
प्रेम के बदले प्रेम।

मैं पहाड़ो से झरता हुवा
पत्थरों से टकराता हुवा
जंगलो से भटकता हुवा
मिट्टी से सने मटमैला
मिल जाऊंगा तुममे,

या कोई रेगिस्तान सोख लेगी
मेरा अस्तित्व बाट में ही
और हो जाऊंगा बिदा खामोशी से ।

#poetry #hindi
प्रेम का प्रतिउत्तर
नदियाँसमुन्दर से नही मांगती हिसाबअपने पानी का,फिर मैं कैसे मांग लूँ तुमसेप्रेम के बदले प्रेम। मैं पहाड़ो से झरता हुवापत्थरों से टकराता हुवाजंगलो से भटकता हुवामिट्टी से सने मटमैलामिल जाऊंगा तुममे, या…
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November 16, 2024 at 6:37 AM