मीत मेरे मन मीत मेरे।
अनन्त तुम हो, सुछम भी तुम हो
सागर तुम हो, बून्द भी तुम हो,
काब्य महाकाब्य तुम हो, पूर्ण विराम बिंदु भी तुम हो
समस्त शास्त्र सुर तान तुम हो, निर्बल का आवाज भी तुम हो।
मीत मेरे मन मीत मेरे,
मेरे लघुता में तु सुछ्म बन के बस
शब्द बन के मेरे, रचना तु रच
मीत मेरे मन मीत मेरे।
pravinkarn.wordpress.com/2017/01/07/g...
मीत मेरे मन मीत मेरे।
अनन्त तुम हो, सुछम भी तुम हो
सागर तुम हो, बून्द भी तुम हो,
काब्य महाकाब्य तुम हो, पूर्ण विराम बिंदु भी तुम हो
समस्त शास्त्र सुर तान तुम हो, निर्बल का आवाज भी तुम हो।
मीत मेरे मन मीत मेरे,
मेरे लघुता में तु सुछ्म बन के बस
शब्द बन के मेरे, रचना तु रच
मीत मेरे मन मीत मेरे।
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