राजेश्वरी जय नमो नम 🙏
मागर्शीष शुक्ल पूर्णिमा के उपलक्ष्य में त्रिपुर भैरवी प्राकट्योत्सव मनाया जाता है, दुर्गा सप्तशती के अनुसार त्रिपुरभैरवी के उग्र स्वरूप की कांति हजारों उगते हुए सूर्य के समान है।
राजेश्वरी जय नमो नम 🙏
मागर्शीष शुक्ल पूर्णिमा के उपलक्ष्य में त्रिपुर भैरवी प्राकट्योत्सव मनाया जाता है, दुर्गा सप्तशती के अनुसार त्रिपुरभैरवी के उग्र स्वरूप की कांति हजारों उगते हुए सूर्य के समान है।
इस पूर्णिमा पर हरिद्वार, काशी, मथुरा और प्रयागराज आदि जगहों पर श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान और तप आदि करने के लिए आते हैं।
इस पूर्णिमा पर हरिद्वार, काशी, मथुरा और प्रयागराज आदि जगहों पर श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान और तप आदि करने के लिए आते हैं।
ज्ञान वैराग्य-सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहिं च पार्वति 🙏
मागर्शीष शुक्ल पूर्णिमा के दिन माँ पार्वती के अन्नपूर्णा स्वरूप के अवतरण दिवस को अन्नपूर्णा प्राकट्योत्सव के रूप में मनाया जाता है, इसी दिन मां पार्वती ने अन्नपूर्णा रूप धारण किया था।
माता अन्नपूर्णा अन्न और समृद्धि की देवी हैं, इस दिन माँ अन्नपूर्णा की आराधना करनी चाहिए, माँ की कृपा से घर में कभी भी अन्न की कोई कमी नही होती है।
ज्ञान वैराग्य-सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहिं च पार्वति 🙏
मागर्शीष शुक्ल पूर्णिमा के दिन माँ पार्वती के अन्नपूर्णा स्वरूप के अवतरण दिवस को अन्नपूर्णा प्राकट्योत्सव के रूप में मनाया जाता है, इसी दिन मां पार्वती ने अन्नपूर्णा रूप धारण किया था।
माता अन्नपूर्णा अन्न और समृद्धि की देवी हैं, इस दिन माँ अन्नपूर्णा की आराधना करनी चाहिए, माँ की कृपा से घर में कभी भी अन्न की कोई कमी नही होती है।
दत्त पूर्णिमा को अत्यंत मंगलकारी दिन माना जाता है, दत्तात्रेय जन्मोत्सव के दिन दत्तात्रेय जी के बालरुप की पूजा की जाती है।
दत्त पूर्णिमा को अत्यंत मंगलकारी दिन माना जाता है, दत्तात्रेय जन्मोत्सव के दिन दत्तात्रेय जी के बालरुप की पूजा की जाती है।
मंगलवार का प्रदोष व्रत भौम प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है, भौम प्रदोष के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त 2 दिसंबर की शाम 5 बजकर 24 मिनट से रात 8 बजकर 7 बजे तक रहेगा।
मंगलवार का प्रदोष व्रत भौम प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है, भौम प्रदोष के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त 2 दिसंबर की शाम 5 बजकर 24 मिनट से रात 8 बजकर 7 बजे तक रहेगा।
इसी दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है, साथ ही इस दिवस को धनुर्मास की एकादशी भी कहते हैं, जिस कारण इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता हैं।
इसी दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है, साथ ही इस दिवस को धनुर्मास की एकादशी भी कहते हैं, जिस कारण इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता हैं।
वैदिक पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि की शुरुआत 30 नवंबर की रात 9 बजकर 30 मिनट पर होगी और इसका समापन 1 दिसंबर की शाम 7 बजकर 2 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार पर इस साल गीता जयंती का पर्व 1 दिसंबर को मनाया जाएगा।
वैदिक पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि की शुरुआत 30 नवंबर की रात 9 बजकर 30 मिनट पर होगी और इसका समापन 1 दिसंबर की शाम 7 बजकर 2 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार पर इस साल गीता जयंती का पर्व 1 दिसंबर को मनाया जाएगा।
#SkandShashthi #Kartikeya #Murugan #HinduFestival
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इस दिन ॐ जानकीवल्लभाय नमः मन्त्र का जाप कर, इस पावन दिन सभी को राम-सीता की आराधना करते हुए अपने सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए प्रभु से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
इस दिन ॐ जानकीवल्लभाय नमः मन्त्र का जाप कर, इस पावन दिन सभी को राम-सीता की आराधना करते हुए अपने सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए प्रभु से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम् 🙏
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम् 🙏
मार्गशीर्ष अमावस्या का व्रत करने से कुंडली के दोष समाप्त होने की भी मान्यता है, इस दिन पितरों का तर्पण और पिंडदान भी किया जाता है।
मार्गशीर्ष अमावस्या का व्रत करने से कुंडली के दोष समाप्त होने की भी मान्यता है, इस दिन पितरों का तर्पण और पिंडदान भी किया जाता है।
मासिक शिवरात्रि में व्रत, उपवास रखने और भगवान शिव की सच्चे मन से आराधना करने से सभी मनोमनाएं पूरी होती हैं।
#MasikShivaratri #Mahadev #Shivratri #omnamahshivaya #hindufestivals #bhaktisarovar
मासिक शिवरात्रि में व्रत, उपवास रखने और भगवान शिव की सच्चे मन से आराधना करने से सभी मनोमनाएं पूरी होती हैं।
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सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि 🙏
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि 🙏
मंडला पूजा 41 दिनों की अवधि है जो मलयालम महीने वृश्चिकम के पहले दिन से शुरू होकर धनु माह के ग्यारहवें दिन तक चलती है। इस वर्ष यह 41 दिनों का कठोर व्रत 17 नवम्बर से शुरू होगा।
मंडला पूजा 41 दिनों की अवधि है जो मलयालम महीने वृश्चिकम के पहले दिन से शुरू होकर धनु माह के ग्यारहवें दिन तक चलती है। इस वर्ष यह 41 दिनों का कठोर व्रत 17 नवम्बर से शुरू होगा।
वृश्चिक संक्रांति का पर्व 16 नवंबर, रविवार को मनाया जाएगा, इस राशि में सूर्य देव 15 दिसंबर तक विराजमान रहेंगे।
वृश्चिक संक्रांति का पर्व 16 नवंबर, रविवार को मनाया जाएगा, इस राशि में सूर्य देव 15 दिसंबर तक विराजमान रहेंगे।
एकादशी व्रत रखने वाले उत्पन्ना एकादशी से ही व्रत शुरु करते हैं। इस वर्ष उदया तिथि में उत्पन्ना एकादशी व्रत 15 नवंबर 2025, शनिवार को रखा जाएगा।
एकादशी व्रत रखने वाले उत्पन्ना एकादशी से ही व्रत शुरु करते हैं। इस वर्ष उदया तिथि में उत्पन्ना एकादशी व्रत 15 नवंबर 2025, शनिवार को रखा जाएगा।
भैरव अष्टमी को भैरव जयंती, काल भैरव अष्टमी या काल भैरव जयंती के नाम से भी जाना जाता है। अगहन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव जयंती का पर्व मनाया जाता है, जिसे कालभैरव अष्टमी भी कहते हैं।
इसी दिन भगवान शिव ने अपने उग्र रूप काल भैरव के रूप में अवतार लिया था, इस दिन भैरव चालीसा या भैरव स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है।
भैरव अष्टमी को भैरव जयंती, काल भैरव अष्टमी या काल भैरव जयंती के नाम से भी जाना जाता है। अगहन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव जयंती का पर्व मनाया जाता है, जिसे कालभैरव अष्टमी भी कहते हैं।
इसी दिन भगवान शिव ने अपने उग्र रूप काल भैरव के रूप में अवतार लिया था, इस दिन भैरव चालीसा या भैरव स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है।
अगहन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है, गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन भक्ति भाव से भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
अगहन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है, गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन भक्ति भाव से भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
यह महीना ईश्वर के प्रति भक्ति, पवित्रता और कृतज्ञता का प्रतीक है, मार्गशीर्ष महीना जप, तप और ध्यान का महीना भी कहा जाता है।
यह महीना ईश्वर के प्रति भक्ति, पवित्रता और कृतज्ञता का प्रतीक है, मार्गशीर्ष महीना जप, तप और ध्यान का महीना भी कहा जाता है।
#GuruNanakJayanti #Gurpurab #KartikaPurnima
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इस दिन भगवान शिव, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। वाराणसी में कार्तिक पूर्णिमा का दिन देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है, जिसे देवताओं की दिवाली कहा जाता है।
इस दिन भगवान शिव, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। वाराणसी में कार्तिक पूर्णिमा का दिन देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है, जिसे देवताओं की दिवाली कहा जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान का विशेष महत्व है, इस दिन घर के मुख्य द्वार, तुलसी के पौधे, पीपल, आंवले और मंदिर में दीप जलाने से जीवन में शुभता आती है।
कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान का विशेष महत्व है, इस दिन घर के मुख्य द्वार, तुलसी के पौधे, पीपल, आंवले और मंदिर में दीप जलाने से जीवन में शुभता आती है।
देवउठनी एकादशी के ठीक अगले दिन तुलसी का विवाह भी संपन्न कराया जाता है, इस वर्ष देवउठनी एकादशी 1 नवंबर को सुबह 9:11 बजे शुरू होगी और 2 नवंबर को सुबह 7:31 बजे समाप्त होगी।
देवउठनी एकादशी के ठीक अगले दिन तुलसी का विवाह भी संपन्न कराया जाता है, इस वर्ष देवउठनी एकादशी 1 नवंबर को सुबह 9:11 बजे शुरू होगी और 2 नवंबर को सुबह 7:31 बजे समाप्त होगी।