इस दिन ॐ जानकीवल्लभाय नमः मन्त्र का जाप कर, इस पावन दिन सभी को राम-सीता की आराधना करते हुए अपने सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए प्रभु से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
इस दिन ॐ जानकीवल्लभाय नमः मन्त्र का जाप कर, इस पावन दिन सभी को राम-सीता की आराधना करते हुए अपने सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए प्रभु से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम् 🙏
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम् 🙏
मार्गशीर्ष अमावस्या का व्रत करने से कुंडली के दोष समाप्त होने की भी मान्यता है, इस दिन पितरों का तर्पण और पिंडदान भी किया जाता है।
मार्गशीर्ष अमावस्या का व्रत करने से कुंडली के दोष समाप्त होने की भी मान्यता है, इस दिन पितरों का तर्पण और पिंडदान भी किया जाता है।
मासिक शिवरात्रि में व्रत, उपवास रखने और भगवान शिव की सच्चे मन से आराधना करने से सभी मनोमनाएं पूरी होती हैं।
#MasikShivaratri #Mahadev #Shivratri #omnamahshivaya #hindufestivals #bhaktisarovar
मासिक शिवरात्रि में व्रत, उपवास रखने और भगवान शिव की सच्चे मन से आराधना करने से सभी मनोमनाएं पूरी होती हैं।
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सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि 🙏
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि 🙏
मंडला पूजा 41 दिनों की अवधि है जो मलयालम महीने वृश्चिकम के पहले दिन से शुरू होकर धनु माह के ग्यारहवें दिन तक चलती है। इस वर्ष यह 41 दिनों का कठोर व्रत 17 नवम्बर से शुरू होगा।
मंडला पूजा 41 दिनों की अवधि है जो मलयालम महीने वृश्चिकम के पहले दिन से शुरू होकर धनु माह के ग्यारहवें दिन तक चलती है। इस वर्ष यह 41 दिनों का कठोर व्रत 17 नवम्बर से शुरू होगा।
वृश्चिक संक्रांति का पर्व 16 नवंबर, रविवार को मनाया जाएगा, इस राशि में सूर्य देव 15 दिसंबर तक विराजमान रहेंगे।
वृश्चिक संक्रांति का पर्व 16 नवंबर, रविवार को मनाया जाएगा, इस राशि में सूर्य देव 15 दिसंबर तक विराजमान रहेंगे।
एकादशी व्रत रखने वाले उत्पन्ना एकादशी से ही व्रत शुरु करते हैं। इस वर्ष उदया तिथि में उत्पन्ना एकादशी व्रत 15 नवंबर 2025, शनिवार को रखा जाएगा।
एकादशी व्रत रखने वाले उत्पन्ना एकादशी से ही व्रत शुरु करते हैं। इस वर्ष उदया तिथि में उत्पन्ना एकादशी व्रत 15 नवंबर 2025, शनिवार को रखा जाएगा।
भैरव अष्टमी को भैरव जयंती, काल भैरव अष्टमी या काल भैरव जयंती के नाम से भी जाना जाता है। अगहन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव जयंती का पर्व मनाया जाता है, जिसे कालभैरव अष्टमी भी कहते हैं।
इसी दिन भगवान शिव ने अपने उग्र रूप काल भैरव के रूप में अवतार लिया था, इस दिन भैरव चालीसा या भैरव स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है।
भैरव अष्टमी को भैरव जयंती, काल भैरव अष्टमी या काल भैरव जयंती के नाम से भी जाना जाता है। अगहन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव जयंती का पर्व मनाया जाता है, जिसे कालभैरव अष्टमी भी कहते हैं।
इसी दिन भगवान शिव ने अपने उग्र रूप काल भैरव के रूप में अवतार लिया था, इस दिन भैरव चालीसा या भैरव स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है।
अगहन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है, गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन भक्ति भाव से भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
अगहन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है, गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन भक्ति भाव से भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
यह महीना ईश्वर के प्रति भक्ति, पवित्रता और कृतज्ञता का प्रतीक है, मार्गशीर्ष महीना जप, तप और ध्यान का महीना भी कहा जाता है।
यह महीना ईश्वर के प्रति भक्ति, पवित्रता और कृतज्ञता का प्रतीक है, मार्गशीर्ष महीना जप, तप और ध्यान का महीना भी कहा जाता है।
#GuruNanakJayanti #Gurpurab #KartikaPurnima
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इस दिन भगवान शिव, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। वाराणसी में कार्तिक पूर्णिमा का दिन देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है, जिसे देवताओं की दिवाली कहा जाता है।
इस दिन भगवान शिव, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। वाराणसी में कार्तिक पूर्णिमा का दिन देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है, जिसे देवताओं की दिवाली कहा जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान का विशेष महत्व है, इस दिन घर के मुख्य द्वार, तुलसी के पौधे, पीपल, आंवले और मंदिर में दीप जलाने से जीवन में शुभता आती है।
कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान का विशेष महत्व है, इस दिन घर के मुख्य द्वार, तुलसी के पौधे, पीपल, आंवले और मंदिर में दीप जलाने से जीवन में शुभता आती है।
देवउठनी एकादशी के ठीक अगले दिन तुलसी का विवाह भी संपन्न कराया जाता है, इस वर्ष देवउठनी एकादशी 1 नवंबर को सुबह 9:11 बजे शुरू होगी और 2 नवंबर को सुबह 7:31 बजे समाप्त होगी।
देवउठनी एकादशी के ठीक अगले दिन तुलसी का विवाह भी संपन्न कराया जाता है, इस वर्ष देवउठनी एकादशी 1 नवंबर को सुबह 9:11 बजे शुरू होगी और 2 नवंबर को सुबह 7:31 बजे समाप्त होगी।
इस दिन को आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन किये गए शुभ कार्य, दान-पुण्य का फल अक्षय यानी अनंत काल तक बना रहता है।
इस दिन को आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन किये गए शुभ कार्य, दान-पुण्य का फल अक्षय यानी अनंत काल तक बना रहता है।
इस दिन किसी गौशाला में जाकर गायों को भोजन कराना और उनकी सेवा करना अत्यंत शुभ माना जाता है, इससे पापों का नाश होता है और परिवार में सौभाग्य बढ़ता है।
इस दिन किसी गौशाला में जाकर गायों को भोजन कराना और उनकी सेवा करना अत्यंत शुभ माना जाता है, इससे पापों का नाश होता है और परिवार में सौभाग्य बढ़ता है।
इस व्रत में सूर्य देव को दो बार अर्घ्य दिया जाता है, जिसमें पहले ढलते सूर्य को और अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत पूरा होता है।
इस व्रत में सूर्य देव को दो बार अर्घ्य दिया जाता है, जिसमें पहले ढलते सूर्य को और अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत पूरा होता है।
लाभ पंचमी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन और व्यवसाय में लाभ होते हैं, इस दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा करने से व्यापार में उन्नति और लाभ होता है।
लाभ पंचमी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन और व्यवसाय में लाभ होते हैं, इस दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा करने से व्यापार में उन्नति और लाभ होता है।
देवी कमला भाग्य, सम्मान और परोपकार की देवी हैं और सभी दिव्य गतिविधियों में ऊर्जा के रूप में उपस्थित रहती हैं। इन्हें भगवान विष्णु की दिव्य शक्ति भी माना जाता है।
देवी कमला भाग्य, सम्मान और परोपकार की देवी हैं और सभी दिव्य गतिविधियों में ऊर्जा के रूप में उपस्थित रहती हैं। इन्हें भगवान विष्णु की दिव्य शक्ति भी माना जाता है।
इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। जिस दिन मध्य रात्रि में निशीथ काल में अमावस्या तिथि हो उसी तिथि को दीपावली पूजन के लिए ग्रहण करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है।
इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। जिस दिन मध्य रात्रि में निशीथ काल में अमावस्या तिथि हो उसी तिथि को दीपावली पूजन के लिए ग्रहण करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है।
मान्यता है कि इस दिन प्रातःकाल स्नान करने और सायंकाल यमराज के नाम से दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और व्यक्ति को दीर्घायु, अच्छे स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मान्यता है कि इस दिन प्रातःकाल स्नान करने और सायंकाल यमराज के नाम से दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और व्यक्ति को दीर्घायु, अच्छे स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।