करतल गत न परहिं पहिचानें।।
सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें।
आवत हृदय सनेह बिसेषें।।
कर्ता सर्वस्य जगतो भर्ता सर्वस्य सर्वगः ।
आहर्ता कार्य जातस्य श्रीरामःशरणं मम ॥ ७॥
नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी।
बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी।।
ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा।
अकथ अनामय नाम न रूपा।।
ऋषिरूपेण यो देवो वन्यवृत्तिमपालयत् ।
योऽन्तरात्मा च सर्वेषां श्रीरामःशरणं मम ॥ १२॥
करतल गत न परहिं पहिचानें।।
सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें।
आवत हृदय सनेह बिसेषें।।
कर्ता सर्वस्य जगतो भर्ता सर्वस्य सर्वगः ।
आहर्ता कार्य जातस्य श्रीरामःशरणं मम ॥ ७॥
नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी।
बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी।।
ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा।
अकथ अनामय नाम न रूपा।।
ऋषिरूपेण यो देवो वन्यवृत्तिमपालयत् ।
योऽन्तरात्मा च सर्वेषां श्रीरामःशरणं मम ॥ १२॥