जब भी अकेले
कहीं गुमसुम बैठे देखती है मुझको,
दबे पाँव चली आती है उदासी
गले में बाहें डाल
चूमती है माथे को
और कहती है - 'धप्पा, मेरी जान' !
जब भी अकेले
कहीं गुमसुम बैठे देखती है मुझको,
दबे पाँव चली आती है उदासी
गले में बाहें डाल
चूमती है माथे को
और कहती है - 'धप्पा, मेरी जान' !
कोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त
-अहमद फ़राज़
कोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त
-अहमद फ़राज़